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हम सबको ज़िन्दगी भगवान के द्वारा दी गई खूबसूरत और अनमोल हीरे के रूप में मिलती है और इसके मालिक हमारे माता-पिता होते हैं, जो हमें भगवान के रूप में मिलते है।
माता-पिता अपनी जान गंवाकर भी अपने बच्चों की रक्षा करते हैं। माँ किस तरह से नौ महीने कितने कष्टों से अपने गर्भ में पालती है।
उसी तरह एक पिता अपने बच्चों की हर ख़्वाहिश को पूरा करने के लिए धूप, गर्मी, सर्दी कैसा भी मौसम क्यों न हो, पर अपने फर्ज़ और जिम्मेदारियों से कभी पीछे नहीं हटता।
यही मेरी कहानी है एक सच्ची कहानी। मुझे एक जीवन तो मेरी माता से मिला और आज मैं जो साँस ले रहा हूँ, वो मेरे पिताजी के कारण क्योंकि उन्होंने ही मुझे इस 70 वर्ष की उम्र में अपनी एक किडनी मुझे दान करके एक नया जीवन दान दिया, जिसका कर्ज़ मैं इस जन्म में तो क्या अगले सात जन्म इनके बेटे के रूप में ले लूँ, तो भी नहीं चुका सकता।
वैसे तो सभी लोग मेरे साथ थे। चाचा, चाचा का परिवार, बहनें और उसका परिवार पर एक शख़्स जो मेरी ज़िन्दगी में भगवान से भी बढ़कर है, जिसने मुझे बचाने के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
अपनी भूख, प्यास, अपना चैन, सुकून यहाँ तक कि मुझे ठीक करने के लिए अपनी सेहत तक का भी ख़्यालय नहीं रखा और वो कोई और नहीं बल्कि मेरा बड़ा भाई श्री सुधीर कुमार हैं और आज भी मुझे अपनी आँखों से एक पल दूर नहीं होने देते इसलिए मैं यह किताब पूरी तरह से अपने जीवनदाता माता-पिता श्री दयाराम शर्मा और माता श्रीमती सन्तोष देवी और बड़े भाई श्री सुधीर कुमार को समर्पित करता हूँ।
अमित कुमार