तीर्थ यात्रा
मोना के लिए तीर्थ सिर्फ उसके महादेव है। तीर्थ यात्रा जिससे धर्म, काम और मोक्ष तीन अर्थों की सिद्धि प्राप्त होती है उसे तीर्थ यात्रा कहते है। तीर्थ-ती और र्थ से बना है। इसका अर्थ होता है तीन तरह के काम की सिद्धि। व्यक्ति पूरा जीवन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति में लगा देता है। तीर्थ धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व वाले स्थानों को कहते हैं जहाँ जाने के लिए लोग लम्बी और अकसर कष्टदायक यात्राएँ करते हैं। इन यात्राओं को तीर्थयात्रा कहते हैं। लोग ज्योतिलिंग के दर्शनों, हरिद्वार, काशी, मथुरा, वृन्दावन जहाँ जिसकी लगन लगी वहाँ जाते है अपने प्रभु से मिलने। हर की पौड़ी की असलियत है कि हर जाए आत्मा ।
हिंदू धर्म के अनुसार इंसान का जन्म मोक्ष के लिए हुआ है। मोक्ष का अर्थ हुआ, आत्म ज्ञान या परमज्ञान को उपलब्ध होना। ईश्वर को महसूस करो कि वो हर पल आपके पास है, मोना अनुभव करती प्रभु उपस्थित है हर जगह और उसी अनुभव में पूरा दिन बीता देती है। मोना को लगता ही नहीं कि उसे किसी तीर्थ जाना चाहिए। जहाँ बैठ जाओ, लगता है उसके प्रभु उसके साथ है, वही तीर्थ है। मोना को लगता है कुछ, तीर्थ ऐसे है जो सदा हमारे आस-पास रहते है। जिनका महत्व किसी तीर्थ स्थलों से कम नहीं होता है।
गुरु तीर्थ,
माता-पिता तीर्थ
संत तीर्थ
भक्त तीर्थ
पत्नी तीर्थ और पति तीर्थ
भगवदीय तीर्थ ।
मोना को जो सबसे ज्यादा अनुभव होता है, वह है गुरू तीर्थ, पति तीर्थ और पत्नी तीर्थ। पति तीर्थ के बारे में धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि जो स्त्री अपने पति के दाहिने चरण को प्रयाग और बाएं चरण को पुष्कर समझकर पति के चरणोदक से स्नान करती है। उसे इन तीर्थो के स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।
पत्नी तीर्थ के बारे में धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि जिस घर में सुशील और व्यवहार कुशल आज्ञाकारी पत्नी होती है। उस घर में देव निवास करते है। पितृ भी उसके घर में रहकर सदा उसके कल्याण करते है।
सभी तीर्थ मे अंतरात्मा ही परम तीर्थ है। बह्म का ध्यान ही परम तीर्थ है, भाव की शुद्धि परम तीर्थ है।