शास्त्र प्रभु प्रेम का
प्रभु प्रेम में अंदर से निकलता है संगीत, नृत्य, गान, लेखनी, काव्य, कविता, पेंटिंग और प्रेम भावों से भरे हुए बहुत प्रकार के शास्त्र। कवि लिखता है तो वह उसमें अनेक सुधार-संशोधन करता है। पर प्रभु प्रेम तो कच्चे, कोरे, वैसे के वैसे जैसे खदान से हीरे निकलते हैं–तराशे नहीं गए–बेतराशे, अनगढ़!
मोना को चिंता नहीं है, भूल-चूक होगी लिखने में। लिखने के नियम पूरे होंगे कि नहीं, मात्राएँ ठीक बैठती हैं कि नहीं; इस सबका कोई लेख-जोख नहीं है। मोना बस लिख रही है अपने महादेव के प्रेम में। चित्रांकन कर रही है महादेव का। नृत्य कर रही है तो भी महादेव के लिए। आज के आधुनिक समय मे सेल्फी भी लेना सीखा उसने तो वो भी महादेव के लिए। मोना घर के कार्यों को निपटाने के लिए कार ड्राइव करती है तो वो भी महादेव के लिए। महादेव के प्रेम में पूरा दिन घरेलू कार्यों और थोड़े इंस्टिट्यूट के कार्य में निकल जाता है। सब काम तो चल ही रहे है उसके बस प्रभु सिमरन में। मोना को सौंदर्य दिख जाता है हर काम में, उसी में वो प्रसन्न हो जाती है।
मीरा तीर्थंकर है। उसका शास्त्र प्रेम का शास्त्र है। मीरा के शास्त्र को शास्त्र कहना भी ठीक नहीं। शास्त्र कम है, संगीत अधिक है। लेकिन संगीत ही तो केवल भक्ति का शास्त्र हो सकता है। जैसे तर्क ज्ञान का शास्त्र बनता है, वैसे संगीत भक्ति का शास्त्र बनता है। जैसे गणित आधार है ज्ञान का, वैसे काव्य आधार है भक्ति का। जैसे सत्य की खोज ज्ञानी करता है, भक्त सत्य की खोज नहीं करता, भक्त सौंदर्य की खोज करता है। भक्त के लिए सौंदर्य ही सत्य है। ज्ञानी कहता है: सत्य सुंदर है। भक्त कहता है: सौंदर्य सत्य है। मीरा को भाव से सुनना, भक्ति से सुनना, श्रद्धा की आँख से देखना। हटा दो तर्क इत्यादि को, किनारे रख दो। थोड़ी देर के लिए मीरा के साथ पागल हो जाओ। यह मस्तों की दुनिया है। यह प्रेमियों की दुनिया है। तो ही तुम समझ पाओगे, अन्यथा चूक जाओगे।
ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है! जागो उठकर देखो जीवन ज्योत उजागर है ..! सत्यम् शिवम् सुंदरम्..!