धर्म एक महाकाव्य कार्तिक पूर्णिमा है
मेरा चाँद मुझे अब आया है नज़र
रुक जा बादल, देख लेने दे मन भर कर।
मोना जब कल की प्रभात फेरी के खूबसूरत भजन, ढोलक और भजन की ध्वनि से नींद खुली तो एक कविता अपने आप मन के तलो पर उतरी।
अब प्रभात फेरी जब जाए
याद प्रभु की आए
होती है अब हर प्रभात ऐसी
प्रभु ना उठायें तो शायद प्रभात ही ना आये।
मोना अपने महादेव के समर्पण में काव्य रचना करने लगी स्वयं पर उसको आश्चर्य हुआ कि कैसे प्रभु कृपा से लेखनी में काव्य अपने आप उतरने लगा है। निःसंदेह जीवन को देखने का मार्ग उसने गणित के आधार पर नहीं जोड़ा था। जब मोना अपने मन को कभी कैनवास और कभी पेपर पर उतारने लगी तो कलयुग में लोग उसे Practical न होना बोलने लगे थे, क्योंकि आर्टिस्ट, कविता रचनाकार, नृत्यक, गायको को समझना थोड़ा कठिन है क्योंकि प्रायः इस प्रकार के लोग जीवन को दिल से जीते है, दिमाग से नहीं। गणित के आधार पर जीवन जीने वाले वैज्ञानिक जीवन जीते है। अगर काव्य की यात्रा पर कोई चलता ही चला जाए, तो परम काव्य परमात्मा पर पहुँचने की प्रकिया आरंभ हो जाती है। जब प्रभु प्रेम बहुत अधिक हो तो कविताएं और संगीत अपने आप निकलने लगता है तभी मीरा, कबीर और सभी संतो ने मगन होकर गाया।
मोना, महादेव में मगन होकर जाने-अनजाने अब गाने भी लग जाती है।
आपको गया हुआ क्या मानू प्रभु
जब आपके सिवा कुछ बचा नहीं ।
जीवन की घड़ियाँ खत्म हो रही शनै शनै
यदि प्रभु नहीं तो शायद मैं भी नहीं।
उसने यह जाना कि काव्य की भाषा तथ्यों के संबंध में नहीं है, रहस्यों के संबंध में है। जब कोई प्रेमी अपनी प्रेयसी से कहता है कि, "तेरा चेहरा चाँद जैसा", तो कोई ऐसा अर्थ नहीं है कि चेहरा चाँद जैसा है। फिर भी वक्तव्य व्यर्थ भी नहीं है। चाँद जैसा चेहरा हो कैसे सकता है? गणित की भाषा और काव्य की भाषा के बीच मे सामंजस्य रखना ही एक तरह से पूर्णिमा ही है। गुरू पूर्णिमा का चाँद ही है, शीतलता प्रदान करते हुए, अंधेरे से घिरे हृदय में रोशनी पहुँचा देते है ये है पूर्णिमा !
सिख सम्प्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयायी सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की प्रतिज्ञा लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है। गुरु नानक देव जी की गिनती हिंदी काव्य धारा के भक्तिकाल के शीर्ष कवियों में की जाती है। गुरु नानक जी निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी धारा के मुख्य विचारकों में से एक थे। गुरुबानी गुरु नानक देव जी के मन तलो से उतरने वाला महाकाव्य है। गुरु ग्रन्थ साहिब के 19 रागों में इनके 174 शब्द गुरबाणी में संकलित हैं. जपजी, सिद्ध गोष्ट, सोहिना, दखनी ओंकार, आसा दी वार, पट्टी और बाढ़ माह उनकी प्रमुख काव्य रचनाएं उन्होंने सँसार को दी।
नानक देव जी ने ईश्वर स्मरण के सम्बन्ध में कहा हैं, "प्रभु के लिए खुशियों के गीत गाओ, प्रभु के नाम की सेवा करो, और उसके सेवकों के सेवक बन जाओ।"
उनका छोटा सा जीवन हम सबके लिए प्रेम, ज्ञान और वीरता का संदेश देने वाला हैं। उनकी शिक्षाएं सदियों तक मानव जाति का पथ प्रदर्शित करती रहेगी। गुरु ही पूर्णिमा का चाँद है और उनकी शिक्षा रुपी रोशनी से अपने अपने आपको प्रकाशित करना ही एक धर्म है वह है महाकाव्य धर्म।