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मोना ने दिवाली के मेले से शिव जी की एक मूर्ति ली तो उसकी छोटी बेटी ने कहा, "माँ, ये शिव जी के एक हाथ में स्वस्तिक, त्रिशूल, डमरू और गले में साँप क्यों है?" तो मोना ने उसकी जिज्ञासा शांत करते हुए गले में सर्प, मस्तक पर चंद्रमा, जटाओं में गंगा, हाथ में त्रिशूल और डमरु का अर्थ बताना प्रारम्भ किया।
स्वास्तिक
स्वास्तिक शब्द को 'सु' और 'अस्ति' का मिश्रण योग माना गया है। 'सु' का अर्थ है शुभ और 'अस्ति' से तात्पर्य है होना।
स्वास्तिक एक पूजनीय और पवित्र चिन्ह है। इसकी जो चार भुजाएं होती है वह चार पॉजिटिव एनर्जी और शुभता को खिंचती है। स्वास्तिक ऊर्जा का केंद्र होता है इसका आदर करना अत्यंत आवश्यक है।
शिव जी के हाथ में स्वास्तिक है। सनातन धर्म में स्वास्तिक के चिन्ह को बहुत ही शुभ माना जाता है। यदि किसी व्यक्ति के हाथ में ऐसा चिन्ह होता है तो वह धार्मिक प्रवत्ति का होता है और समाज में उसे मान-सम्मान प्राप्त होता है।
त्रिशूल
महादेव का त्रिशूल प्रकृति के तीन प्रारूप- आविष्कार, पोषण और विनाश को भी प्रदर्शित करता है। साथ ही तीनों काल भूत, वर्तमान और भविष्य भी इस त्रिशूल में समाते हैं।
भगवान शिव के हाथों में शोभा पाने वाला त्रिशूल में तीन गुण होते है उनका अर्थ है सत्व, रज और तम। भगवान शिव ने तीनों गुणों को अपने हाथ मे लेकर इन तीनों के बीच सामंजस्य बना कर सृष्टि का संचालन करते है।
हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, जिन लोगों के हाथ में त्रिशूल का चिन्ह होना अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि किसी व्यक्ति की हथेली में मस्तिष्क रेखा या भाग्य रेखा पर त्रिशूल का चिन्ह हो तो ऐसे लोगों की जीवन में सफलता प्राप्त होती है। इन लोगों को अपने जीवन में आवश्यकता से अधिक धन-धान्य हर प्रकार का सुख प्राप्त होता है। यह बड़े नेता या प्रभावशाली व्यक्ति बनते हैं। ऐसे लोगों पर भोलेनाथ की कृपा जीवनभर बनी रहती है।
डमरू
भगवान शिव के हाथों में डमरू की कहानी अत्यंत ही रोचक है। कहा जाता है कि सृष्टि के आरंभ में जब देवी सरस्वती प्रकट हुई तब देवी ने अपनी वीणा के स्वर से सृष्टि में ध्वनि को जन्म दिया। लेकिन इस ध्वनि में न तो सुर था और न ही संगीत। सृष्टि के आरंभ से आनंदित शिव जी ने जैसे ही नृत्य आरंभ किया और 14 बार डमरू बजाया तभी उनके डमरू की ध्वनि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ। इसी कारण से शिव के हाथ में सदैव डमरू रहता है। कहा यह भी जाता है कि सृष्टि में संतुलन के लिए इसे भगवान शिव अपने साथ लेकर प्रकट हुए थे। यदि मनुष्य की हथेली पर डमरू जैसा चिन्ह दिखाई देता है तो ऐसे लोगों पर भी भगवान शिव की कृपा रहती है। जो व्यक्ति अपनी हथेली पर इस निशान को देखता है, उस पर विपदाओं का संकट कम हो जाता है। साथ ही वह आर्थिक रूप में भी समृद्ध रहता है, उसे जीवन में कभी आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है।
चाँद
मान्यता है कि भगवान शिव ने इस ब्रम्हांड और सृष्टि की रक्षा के लिए समुद्र मंथन से निकले विष को पी लिया था। विष के प्रभाव से जब भगवान शंकर का शरीर गर्म होने लगा तब चंद्रमा ने भोलेशंकर के सिर पर विराजमान होकर उन्हें शीतलता प्रदान करने की प्रार्थना की। लेकिन शिव ने चंद्रमा के आग्रह को नहीं माना। लेकिन जब भगवान शंकर विष के तीव्र प्रभाव को सहन नहीं कर पाये तब देवताओं ने सिर पर चंद्रमा को धारण करने का निवेदन किया। जब भगवान शिव ने चंद्रमा को धारण किया तब विष की तीव्रता कम होने लगी। तभी से चंद्रमा शिव के सिर पर विराजमान हैं। हस्त शास्त्र में कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की हथेली में आधा चाँद बनता है, वह अपने जीवनसाथी से बहुत प्रेम करते हैं। केवल यही नहीं वह अपने साथी से भी ऐसे ही प्रेम की अपेक्षा रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस व्यक्ति की हथेली में चाँद का निशान होता है, वह बहुत तेज दिमाग वाला होता है और वह किसी भी कठिन परिस्थिति से आसानी से निकल जाता है।
गले के साँप
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वासुकी ने भगवान शिव की सेवा में नियुक्त होना स्वीकार किया। कहते हैं कि तभी से भगवान शिव ने नागों के राजा वासुकी को अपने गले का हार बनाया।
भगवान शिव अपने गले में जो सर्प धारण करते हैं वह सर्प उनके गले में तीन बार लिपटे रहता है यह बताता हैं कि ब्रह्मांड तीन प्रकार की मुख्य शक्तियों से संचालित है। भूत, भविष्य व वर्तमान तीनों कालों का सूचक है तीन बार घूम हुआ सर्प। सर्प कुण्डलिनी शक्ति का प्रतीक है।जो एक समय पर जागृत हो जाती है। उसी प्रतीक के रूप में सर्प उनके गले से लिपटा रहता है।
स्वप्न शास्त्र के अनुसार भगवान शिव भले न दिखें लेकिन आप खुद को सर्पों से घिरा पाएं तो समझ लें कि आपके ऊपर से धन संकट दूर होने वाला है। यह अत्यंत ही शुभ संकेत होता है। यदि धन संकट नहीं हो तो ये संकेत आपको अचानक से धन लाभ का भी हो सकता है।
प्रतीकों का आध्यात्मिक अर्थ समझते हुए मोना ने अपनी बेटी से कहा कि
साँप -अपने गुरू की आज्ञा से शिष्य अपने मन को सर्प समझ कर चेतन्य स्वरूप शिव को छोड़ना नहीं। सर्प की पकड़, वो भी वासुकि नाग की, छूट नही सकती। वैसे ही गुरुकी बात को पकड़ कर शिव स्वरूप को प्राप्त कर लो।
चाँद - चन्द्रमा करीब 3 लाख 82 हजार किमी दूर है हमसे। सही कल्पना यह है कि शिव हमसे इतनी ही दूर है। शिव ब्रह्मांड के आखिरी छोर तक आकाश गंगा तक है। वहाँ तक गुरु का हाथ पकड़ कर चलने का प्रयास करो।
डमरू - मनुष्य के अंदर अनाहत नाद का प्रतीक है। सुनिए अपने अंदर के संगीत को। ब्रह्मांड में इसी तरह का नाद लगातार गूंज रहा है प्रयास कीजिए कि आप भी वह सुने।
त्रिशूल- वास्तव में त्रिशूल प्रतीक है आध्यात्मिक जीवन के तीन मूल आयामों- इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी को साधने का। गौरतलब है कि मानव-शरीर में प्राणिक ऊर्जा के केवल यही तीन मूलस्रोत हैं। जब आप तीनों नाड़ियों पर विजय पा लेते है तो उस स्थिति में कोई भी बाह्य कोलाहल आपकी आंतरिक शांति को डिगा नहीं सकता। सदाशिव को इसीलिए आदियोगी कहा गया है क्योंकि उन्होंने प्राणिक ऊर्जा को सुषुम्ना नाड़ी से प्रवाहित करते हुए सहस्रार चक्र में स्थापित करके अपनी कुंडलिनी को जागृत किया और लोककल्याण के लिए कालकूट पीकर नीलकंठ महादेव कहलाए।
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