ईश्वर नाम-सुमिरण
प्रेम सहित निष्ठापूर्वक किया गया ईश्वर नाम-सुमिरण जीव को आत्मोन्नति ओर ले जाता है। हर पल परमात्मा की कृपा से जीव आनन्द-विभोर रहता है। मोना का प्रयास रहता है कि महादेव नाम सुमिरण हर साँस में चलता रहे। आधुनिक समाज में, जॉब करते हुए, घर-गृहस्ती रहते हुए , बच्चों का देखभाल करते हुए यह सब थोड़ा कठिन लगता है, पर प्रयास से सब सम्भव है। निर्भर यह करता है कि आप ने ईश्वर को कौन से स्थान पर रखा है। प्रायः लोग जॉब ,माँ-पिताजी, पत्नी-बच्चे, घर, सम्बन्धियों को पहले रखते है उसके उपरांत जो समय बच जाता है वह समय वे प्रभु सुमिरण के लिए रखते है। जबकि होना इसके विपरीत चाहिए। सबसे पहले प्रभु, फिर कुछ भी। बिना नाम सुमिरण के मदमस्त मन को नियंत्रण में करना सम्भव नहीं है। अजपा जाप में चित्तवृत्ति को लीन करना है।
एक फ़िल्मी गाना एकदम सही लगता है मोना को ।
मेरी साँसों में तू हैं समाया
मेरा जीवन तो है तेरा साया
तेरी पूजा करुँ मैं तो हरदम
ये है तेरे करम
कभी खुशी कभी गम
न जुदा होंगे हम
कभी खुशी कभी गम
गांव मे औरतें, चार मटके अपने सिर पर रख कर बातें करते हुए चलती हैं, पर उनका एक ध्यान अपने मटके पर होता ही है। ऐसे ही घर में छोटा बच्चा हो तो माँ घर के सारे काम करते हुए भी एक ध्यान बच्चे पर सदैव होता है। जब आप प्रत्येक श्वांस को शिव के रूप में मानकर उसी की साधना करते है । किसी प्रकार का बाहरी प्रयत्न किये बिना उसे केवल यह ध्यान देना होता है कि कोई भी श्वांस व्यर्थ न जाय तो वही आपको अपनी शक्ति से एक दिन मिला देता हैं, उसी को शिव शक्ति कह सकते है। इसमें किसी प्रकार की माला या मंत्र का प्रयोग नहीं होता, बल्कि श्वांस को ही माला मानकर जप करना होता है। अजपा जप योग की वह अवस्था है, जिसमें योग करने केलिए प्रयत्न नहीं किया जाता है बल्कि स्वत: हो जाता है और जब योग स्वत: हो जाता है तो श्वांसों में शिव का वास हो जाता है।
भजन-अभ्यास और ध्यान साधना का समय परमात्मा से मिलने का समय है। अपना वायदा निश्चय ही निभाना चाहिए। प्रभु तो अपना वचन निभाते ही है, जो समय आप बोलोगे, प्रभु उसी समय को अपना समय बना लेंगे, लेकिन आप ही समय को आगे पीछे या न करने जैसा करोगे तो उसमें भगवान का क्या दोष। "एक समय, एक आसान और एक मंत्र" एक प्रकार का सूत्र समझे। अगर तुम प्रभु सुमरिन की आदत डालने का पुरुषार्थ करोगे तो निश्चय ही तुम्हें अपना वचन मन को आदत डालने में प्रकृति तुम्हारी सहायता करेगी। प्रेम व लगन से किए गए नाम-सुमिरण द्वारा प्रभु का दर्शन अवश्य होता है।
परमात्मा प्रेम की डोरी में बँधे प्रेमी को इसका अनुभव सेवक अन्तःकरण में स्वयं कर सकता है।