ईश्वर के दर्शन की प्यास
मोना अपने ईश्वर के दर्शन करने के लिए दिन के हर पहर मे इंतजार करती है। उसके पास सिर्फ तीन शब्द होते है, "प्रभु दर्शन दीजिये।" मन के इस भाव को यदि इस कलयुगी समाज मे बोला जाये तो यह समझा जाएगा कि इस आधुनिक सामाज मे ईश्वर के दर्शन के लिए किसके पास टाइम है। आधुनिक समाज जीवन की सुख सुविधाओं को जुटाने में दिन के बहुत सारे पहर ख़र्च कर देता है और बाकी जो वक्त होता है फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सअप पर गुज़ार देता है। कभी एक पहर आँख बंद कर अपने अंदर नहीं देखता, शायद खुद से मिलन हो जाये वही। शिव और शक्ति एक हो जाये। उस परमात्मा से मिलन या उस दिव्य प्रेम का संबंध उन्हीं का जुड़ता है, जो सोच-विचार खोने को तैयार हों; जो सिर गंवाने को उत्सुक हों। उस मूल्य को जो नहीं चुका सकता, वह सोचे भक्ति के संबंध में, विचारे; लेकिन भक्त नहीं हो सकता।
स्त्री दाएं तरफ के मस्तिष्क से जीती है; पुरुष बाएं तरफ के मस्तिष्क से जीता है। इसलिए स्त्री-पुरुष के बीच बात भी मुश्किल होती है; कोई मेल नहीं बैठता दिखता है। पुरुष कुछ कहता है, स्त्री कुछ कहती है। पुरुष और ढंग से सोचता है, स्त्री और ढंग से सोचती है। उनके सोचने की प्रक्रियाएं अलग हैं। स्त्री विधिवत नहीं सोचती; सीधी छलांग लगाती है, निष्कर्षों पर पहुंच जाती है। पुरुष निष्कर्ष पर नहीं पहुंचता, विधियों से गुजरता है। क्रमबद्ध–एक-एक कदम।
प्रेम में कोई विधि नहीं होती, विधान नहीं होता। प्रेम की क्या विधि और क्या विधान! हो जाता है बिजली की कौंध की तरह। हो गया तो हो गया। नहीं हुआ तो करने का कोई उपाय नहीं है।
एक भजन मोना गुनगुनाती है कभी कभी -
ओ शंकर मेरे कब होंगे दर्शन तेरे
जीवन पथ पर, शाम सवेरे छाए है घनघोर अँधेरे
मै मूरख तू अंतरयामी,
मै सेवक तू मेरा स्वामी
काहे मुझ से नाता तोडा,
मन छोड़ा, मन्दिर भी छोड़ा,
कितनी दूर लगाये तूने जा कैलाश पे डेरे
तेरे द्वार पे जोत जगाते,
युग बीते तेरे गुण गाते
ना मांगू मैं हीरे मोती,
मांगू बस थोड़ी सी ज्योति
खली हाथ ना जाउँगा मैं,
भजन के भावों में बह कर, मोना अपने महादेव से विनती कर रही हैं कि हे महादेव ! मैं दिन रात तुम्हारी राह देखती हूँ । मेरी आँखे तुम्हे देखने के लिए बैचेन रहती हैं मेरे मन को भी तुम्हारे दर्शन की ही ललक हैं ।