बच्चों को ध्यान की शिक्षा
महादेव की कृपा से मोना जब माँ बनी तो उसने महसूस किया कि सिर्फ शारीरिक दृष्टि से माँ बनना ही बहुत नहीं है, अपने आपको मानसिक रूप से भी तैयार करना ज़रूरी है। दोनों माता पिता का कर्त्तव्य है कि अपनी चित की अवस्था को शांत रखे। माँ-बाप चौबीस घंटे में घंटे-दो-घंटे को भी मौन होकर नहीं बैठते, उनके बच्चों के जीवन में मौन नहीं हो सकता। जो माँ-बाप घंटे-दो-घंटे घर में प्रार्थना में लीन नहीं हो जाते हैं, ध्यान में नहीं चले जाते हैं, उनके बच्चे कैसे तेजस्वी, शान्त और प्रज्ञामय होगें ।
बच्चे देखते हैं माँ-बाप को कलह करते हुए, द्वंद्व करते हुए, संघर्ष करते हुए, लड़ते हुए, दुर्वचन बोलते हुए। बच्चे देखते हैं, माँ-बाप के बीच कोई बहुत गहरा प्रेम का संबंध नहीं देखते, कोई शांति नहीं देखते, कोई आनंद नहीं देखते, उदासी, ऊब, घबड़ाहट, परेशानी देखते हैं, ठीक इसी तरह की जीवन की दिशा उनकी हो जाती है ।
माँ का उत्तरदायित्व ज्यादा होता हैं क्योंकि 9 महीने बच्चा माँ के गर्भ में रहता है । यदि एक औरत माँ बनना चाहती है तो उसको पहले से ध्यान साधना सीख कर ही माँ बनने का कदम लेना चाहिए, क्योकि यदि सिर्फ शारीरिक रूप से माँ बनना है तो वो तो हर जानवर भी बन जाता है और एक जानवर ही जन्म लेता है। दिमाग और चित शांत रखते हुए माँ बनने की प्रकिया करनी चाहिए । आजकल मॉडर्न/कलयुग में प्रेग्नेंसी योगा भी होने लगा है, वो भी ज्यादा शरीर पर आधारित होता हैं । जरूरत है तो मौन और शांत होकर घड़ी-दो-घड़ी को बैठ जाएं ।
बच्चे बहिर्मुखी इसलिए हो जाते हैं कि वे माँ-बाप को देखते हैं, दौड़ते हुए बाहर की तरफ । एक माँ को वे देखते हैं बहुत अच्छे कपड़ों की तरफ दौड़ते हुए, देखते हैं, गहनों की तरफ दौड़ते हुए, देखते हैं बड़े मकान की तरफ दौड़ते हुए, देखते हैं बाहर की तरफ दौड़ते हुए। उन बच्चों का भी जीवन बहिर्मुखी हो जाता है ।
अगर वे देखें एक माँ को आँख बंद किए हुए और उसके चेहरे पर आनंद झरते हुए देखें और वे देखें एक माँ को प्रेम से भरे हुए और वे देखें एक माँ को छोटे मकान में भी प्रपुल्लित और आनंदित, और वे कभी-कभी देखें कि माँ आँख बंद कर लेती है और किसी आनंद लोक में चली जाती है। वे पूछेंगे कि यह क्या है? कहाँ चली जाती हो? वे अगर माँ को ध्यान में और प्रार्थना में देखें, वे अगर किसी गहरी तल्लीनता में उसे डूबा हुआ देखें, वे अगर उसे बहुत गहरे प्रेम में देखें, तो वे जानना चाहेंगे कि कहाँ जाती हो? यह खुशी कहाँ से आती है? यह आंखों में शांति कहाँ से आती है? यह प्रपुल्लता चेहरे पर कहाँ से आती है? क्षह सौंदर्य, यह जीवन कहाँ से आ रहा है?
वे पूछेंगे, वे जानना चाहेंगे । और वही जानना, वही पूछना... वही जिज्ञासा, फिर उन्हें मार्ग दिया जा सकता है ।
मोना अपने ध्यान अनुभव से माँ बनने का सफर मे आनंदित है । अगर दुनिया में कुछ स्त्रियां भी माँ हो सकें तो सारी दुनिया दूसरी हो सकती है । बच्चों को बदलना हो तो खुद को बदलना जरूरी है । अगर बच्चों से प्रेम हो तो खुद को बदल लेना एकदम जरूरी है । जब तक आपके कोई बच्चा नहीं था, तब तक आपकी कोई जिम्मेवारी नहीं थी । बच्चा होने के बाद एक अद्भुत जिम्मेवारी आपके ऊपर आ गई । एक पूरा जीवन बनेगा या बिगड़ेगा और वह आप पर निर्भर हो गया। अब आप जो भी करोगे उसका परिणाम उस बच्चे पर होगा ।