publisherbbp@gmail.com
कालिदास सुकुमार शैली के प्रख्यात कवि हैं। इनकी कृतियों का मूल्यांकन भारत ही नहीं, भारत के बाहर भी होता रहा है। इनकी तीन कृतियांँ ‘‘लघुत्रयी’’ के नाम से संस्कृत जगत् में विख्यात है। रघुवंशम् एवं कुमार-संभवम् दो महाकाव्य तथा मेघदूतम् खण्ड काव्य। इन तीनों का समवेत् रूप कुछ विशिष्टताओं से अलंकृत हैं। एक शैली में रचित एक ही कवि की तीन रचनाएँ साहित्यिक वैशिष्ट्य के अतिरिक्त कवि की प्रतिभा का अमूल्य निदर्शक है। अगर यह कहा जाय कि काव्य शास्त्रियों ने काव्यांग-स्थिरीकरण में कालिदास की इन कृतियों को हीं आधार बनाया है, तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी।
कालिदास के काव्यों पर अब तक शोध-कार्य बहुत अधिक हो चुके है, फिर भी इनके काव्यों के अनेक पक्ष अभी भी शोध-कार्य की अपेक्षा रखते हैं। विविध पक्षों को उद्भाषित करनेवाले शोध-कार्यों का परिगणन उपयुक्त नहीं। संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध एवं विख्यात कवि कालिदास के समय, जन्म आदि से सम्बंध में यदपि अनेक शोध-प्रबंध एवं शोध-पत्र लिखे गये है, फिर भी अंतिम रूप में इन तथ्यों को प्रमाणित करना संगत नहीं हो सका है। कालिदास पर अब तक किये गये कार्यो में इनके ग्रन्थों का साहित्यिक पक्ष काव्यशास्त्रीय विवेचन, सांस्कृतिक-परिशीलन, शब्द-योजना, नामाख्यात्, उपसर्ग-निपात से संबंधित कार्य, प्रकृति-चित्रण एवं अन्यान्य विषयों से संबंध भी कार्य निष्पादित हो चुके है।
साहित्य के विद्यार्थी होने के चलते कालिदास मेरे प्रिय कवि रहे हैं। कालिदास के ग्रंथो का विशेष रूप में अध्ययन मेरा प्रधान विषय रहा है। कालिदास के ग्रन्थों के अध्ययन के बाद जब इन पर किये गये शोध कार्योें का अन्वेषण मैंने किया, तो देखा कि ‘‘लघुत्रयी‘‘ चरित्र विषयक संकल्पना का समीक्षण अभी तक अछूता है। विभिन्न टीकाओं में एवं विभिन्न ग्रन्थों की भूमिका में इनके काव्यों के चरित्र विषयक संकल्पना की ओर संकेत अवश्य किया गया है। ‘‘लघुत्रयी’’ में परिगणित तीनों ही ग्रन्थों के चरित्र विषयक संकल्पना की समीक्षा नहीं होने से कालिदास के साहित्य का यह पक्ष अनालोचित एवं असमीक्षित था, यही कारण है, कि मैंने अपने शोध-प्रबंध का विषय इसे ही चुना।
प्रस्तुत शोध-कार्य कालिदास के साहित्य का अनोलोचित पक्ष है, जिसकी समीक्षा की गयी है। मैंने इस शोध-प्रंबंध में ‘‘लघुत्रयी’’ में उपस्थित विविध पात्रों की समीक्षा विविध दृष्टियों से की है। कालिदास की तद्विषयक धारणा का विशेष अवबोध इसी का परिणाम है। नौ अध्यायों में विभाजित यह शोद्य-प्रबंध विषय के अनुरूप आयामित हैं। साथ ही साथ अधिक समय के परिश्रम के परिणाम है।
‘‘लघुत्रयी’’ के प्रसिद्ध कवि कालिदास पर किसी प्रकार का कार्य अपने आप में महत्त्वपूर्ण तो है ही, कवि के परिचयात्मक विवरण के बिना वह अपूर्ण लगता है। परिणामस्वरूप ‘‘प्रथम-अध्याय’’ में कालिदास का परिचयात्मक विवरण उपस्थापित किया गया है। लघुत्रयी से सम्बद्ध अपेक्षित विवरणों को भी यहीं दिया गया है क्योकि संस्कृृत साहित्य में ‘‘लधुत्रयी’’ का एक विशेष महत्त्व है।