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विचार ही एक मात्रा ऐसी शक्ति है जिनसे हम दूसरों को प्रभावित भी करते हैं और दूसरों से प्रभावित भी होते हैं।
विचारों का हमारे जीवन पर स्पष्ट प्रभाव सदैव बना रहता है।
विचारों को बहुत ही ध्यान से, यथायोग्य मनन, चिंतन और मंथन के बाद ही मन की भूमि पर रोपित और अनुकृत करना चाहिए, क्योकि यही अंकुर पहले पौधा और फिर विशाल वट में रूपांतरित होकर हमारे समस्त जीवन को आच्छादित कर देगा।
विचारों की प्रबलता इसी से समझी जा सकती है कि भगवान् श्रीकृष्ण विचारों से ही पांडवों के साथ होने के कारन बिना शाश्त्र उठाये उन्हें विजयी बनाने में सफल हो सके।
अपने दूषित विचारों के कारण की शकुनि ने एक परम शक्तिशाली राज्य और पुरे कुरु वंश को नष्ट कर दिया।
इसलिए विचारों को उस वातावरण में बनाये रखना भी अति आवश्यक है जो आपके अनुसार कार्य न कर सत्य के अनुसार कार्य करता हो।
विचारों के कारण ही हम किसी के जीवन में जीवित रहते हैं और इन्ही के कारण हम अपने जीवन में ही मृत्यु समान शक्तिहीन अनुभव करते हैं।
इसलिए विचारों को कभी भी दूषित मत होने दीजिये। उन्हें सदैव पवित्र, बलशाली और कर्मशील बनाये रखिये।
ईश्वर आपके भीतर ही है, उसकी शक्ति आप में निहित है।
इस विचार को बारम्बार मनन कीजिये, तो आप स्वयं को उस अनंत ऊर्जा से भरा हुआ पायेंगे, जिस को पाकर न तो आप अपने जीवन में कभी मृत्यु के भय को प्राप्त होंगे और न ही अपने जीवन के पश्यत मृत्यु को।