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यह पुस्तक 'स्वीकार' मैंने श्री रतन टाटा जी के जीवन से प्रभावित होकर लिखी है। इस काव्य संग्रह में आपके जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव व प्रेम को दर्शाया गया है जो कि हम सब के जीवन को निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
ईश्वर ने सभी को जीवन दिया है और यह हम सब का मुख्य कर्तव्य भी बनता है कि हम हमारे जीवन को सही मार्ग पर लेकर चलें ताकि लोग हमें सदियों तक याद रखें।
नई सुबह कुछ न कुछ नया ही लेकर आती है और शाम हमें कुछ न कुछ सिखा कर ही जाती है। अतः यह हमारा उद्देश्य होना चाहिए कि हम रोज कुछ न कुछ नया सीखे और स्वयं को चुनौतियों के लिए तैयार रखें। हमें स्वीकार करना चाहिए आने वाले कल को और परिवर्तन को भी।
खैर, हम हमारे जीवन को जी रहे हैं या ढकेल रहे हैं। यह बात हमारी सोच और हमारे कर्मों पर निर्भर करती है। अतः हमें कर्म करते रहना चाहिए और फल स्वयं परमात्मा किसी न किसी बहाने से देते रहते हैं।
- सधन्यवाद!