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इस संकलन द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है, कि संसार का जितना भी ज्ञान है वह मनुष्य को दुख से सुख की दुनिया में ले जाने के लिए असमर्थ है, वो भी सदा काल के लिए। ऐसा कोई ज्ञान नहीं है जो समस्याएं होते हुए भी उसको कैसे आसानी से पार कर जाएं, और सुखी रह कर सुख दान कर सकें। जब मनुष्य समस्याओं के चक्रव्यूह से निकलने की असफ़ल कोशिश करता है तो सबसे ज्यादा ईश्वर को ही याद करता है।
पहला भाग परमात्म ज्ञान, शिव बाबा और ब्रह्मकुमारियों के प्रति मेरी कृतज्ञता है। इस ज्ञान ने मुझे सांसारिक प्रपंच से निकाल, एक सुखद और आनंद की दुनिया में पहुंचा दिया। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि हम सब अपनी अपनी ज़िम्मेदारियों का त्याग कर दें। इसके विपरीत प्रवृत्ति में रहते हुए कैसे एक सुंदर जीवन जी सकते हैं और अपना प्रालब्ध बना सकते हैं परमात्म ज्ञान द्वारा, ही यथार्थता है। क्योंकि संकल्प के बिना कुछ भी प्रकट नहीं हो सकता। आपके आस पास जो भी हो रहा है या आपके साथ जो भी हो रहा है उसका कारण सिर्फ और सिर्फ संकल्प है। संकल्प एक बीज की तरह होता है। जैसा बीज वैसा फल। इसको कहते भी हैं संकल्प से सृष्टि रचना ।
पाठकों से अनुरोध है कि दूसरे भाग की कृतियाँ को पढ़ते समय इस बात को मद्द-ए-नज़र रखें कि ये मैंने पन्द्रह साल की उम्र में लिखना शुरू किया था। जब कभी दिल-शिकस्तगी का आलम हुआ तो कागज़ पर कलम से शब्दों को उकेर दिया था। ये सिलसिला कुछ बीस-तीस साल चला। बाद में मैंने इंग्लिश में लिखना शुरू कर दिया।
अंतिम भाग उन लोगों की समीक्षा है जो मुझे स्कूल के दिनों से लेकर आज तक जानते हैं; जिनमें दोस्त, सहकर्मी और “कज़िन” शामिल हैं। ये मेरे अनुभवों की यात्रा है जिसने मुझे मुक्ति तथा जीवन मुक्ति का रास्ता बता दिया। चलना तो मुझे ही है श्रीमत पर, क्योंकि एक सुनहरा भविष्य सामने है।