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तन-मन को बर्बादी देकर, धन को देती दीवाला मेरी भारत मातृ-भूमि से हो मदिरा का मुँह काल मधुशाला परिवर्तित होकर, शिशु शाला का ले-ले रूप साकी बाला भी बन जाये, किसी व्यथित की मधुबाला ।। -"व्यथित"
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