स्वार्थ समर-The War of Selfishness
Author- दीपक कुमार
देश में
घोघापंथियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है।
गाँवों में इनके उत्पादन की गति थोड़ी कम है क्योंकि यहाँ उन्हें उस प्रकार का फर्टिलाइजर नहीं मिलता।
गोबर और मिट्टी में कितना विकास होगा? पर शहरों में ये तीव्र गति से बढ़ रहे हैं।
ये लोग प्रतिक्रिया देने में विशेषज्ञ होते हैं। किसी भी मामले में, चाहे उसकी जानकारी इन्हें रत्ती भर न हो, अपना मुँह खोल प्रतिक्रिया जरूर देते हैं।
इनके पास कई प्रकार के मुखौटे होते हैं। अलग-अलग मौकों पर सुविधानुसार अलग-अलग मुखौटे।
इनके सबसे मजबूत और टिकाऊ मुखौटे का नाम है- मानवाधिकार।
मनुष्य के अधिकारों के प्रति ये इतने संवेदनशील हैं कि आतंकवादियों की मौत पर मोमबत्ती जलाते हैं, आँसू बहाते हैं, नक्सलियों को क्रांतिकारी बताते हैं।
सुरक्षा बलों की शहादत इन्हें विचलित नहीं करती। वे तो भर्ती ही होते हैं मरने के लिए।
इन्हें अचानक देश में डर लगने लगता है और फिर कभी पुरस्कार वापसी होने लगती हैं।
गाँवों में इन घोघापंथियों को शहरों की तरह सहूलियतें नहीं मिलती।
अखबारों में नाम नहीं आता। मिडिया इंटरव्यू लेने नहीं आती।
लाइव चर्चा में नहीं बुलाया जाता, इसलिए इनका विकास अपेक्षाकृत कम है, पर इनका अस्तित्व है।
इसी उपन्यास से......
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