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अधिकांश कहानियाँ मनगढ़ंत ही होती हैं परन्तु कहानी के मनगढ़ंत होने अथवा सत्य पर आधारित होने से कहानी के गुणवत्ता और ग्राहयता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वस्तुतः सत्यकथा और मनगढ़ंत कथा में भेद करना भी कठिन होता है क्योंकि सत्यकथा भी यदि बिना गढ़ के प्रस्तुत किया जाये तो वह समाचार प्रसारण लगने लगेगा। कहानी पढ़ने का उद्देश्य भी उसमें सत्य ढूँढ़ना नहीं होता है। कहानी में उत्सुकता बनाये रखने के लिये उसे इस प्रकार गढ़ना पड़ता है कि कहानी के पात्रों की सोच और कर्म, समाज में उपस्थित पात्रों का प्रतिनिधित्व करें। घटनाऐं काल्पनिक होते हुये भी अस्वभाविक न हो। कहानी के संवाद भी बोलचाल की भाषा में ही स्वभाविक होना चाहिये।
मनगढ़ंत कहानियों का जन्म, मन में होता है जहाँ आस-पास की घटनाऐं और कथाक्रम का वास होता है। मनगढ़ंत लिखने से कहानी न तो काल्पनिक होती है और न ही सत्यकथा लिखने से सत्य का प्रसारण होता है। इस कहानी संग्रह के सभी पात्र और घटनाऐं मनगढ़ंत है तथापि यह पाठक पर निर्भर करता है कि वह इस कहानी संग्रह को किस रूप में स्वीकार करता है।