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पुस्तक ‘फ़िल्म सेन्सरशिप के सौ वर्ष’ भारत में फ़िल्म सेन्सरशिप की 100 वर्षों की यात्रा का पूरा लेखा जोखा प्रस्तुत करती है। वर्ष 1918 में जिस ब्रिटिश फिल्म सेंसर नीति को भारत के तत्कालीन समाज को ध्यान में रखकर आरंभ किया गया था उसे मौजूदा सूचना प्रौद्योगिकी के युग भारत जैसे सांस्कृतिक सामाजिक विविधता वाले देश के संदर्भ में समझना जरूरी हो जाता है । पुस्तक इन्हीं 100 वर्षों में हुए सेंसरशिप नीति के विस्तार, प्रचार प्रसार विवाद और बदलते नैतिक मानदंडों को ध्यान में रखकर गई है । दुनिया भर के प्रमुख देशों के सिनेमा और वहाँ लागू फिल्म सेंसरशिप के अध्ययन से फिल्म सेंसरशिप की सैद्धांतिक और व्यावहारिक व्याख्या की गई है । समाज के बदलते मानक और मूल्यों में विविधता के परोक्ष फिल्म सेंसरशिप अधिनियम को समझना इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य रहा है ।