publisherbbp@gmail.com
अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के सबसे सशक्त माध्यम के रूप मे सिनेमा को देखा जाता है, कनाडा के दार्शनिक मार्शल मैकलुहान ने सिनेमा को मैजिक मैट (जादुई चटाई) की संज्ञा दी है । लेकिन सिनेमा के जरिये फ़िल्मकार/निर्माता अपनी अभिव्यक्ति को आज के परिदृश्य मे व्यक्त कर पाने मे पूर्णत: सफल हो पा रहे हैं यह जिज्ञासु प्रश्न है । जिस देश में संविधान से हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है, उस देश में किसी प्रकार के सेंसरशिप संस्था की जरूरत भी है क्या? देश के जागरुक फिल्मकार,दर्शक और नागरिक यह सवाल हमेशा से उठाते रहे हैं । समय-समय पर जिस प्रकार से फिल्में प्रतिबंधित की जाती हैं, उनसे इस सवाल की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है । दूसरी तरफ समाज का एक तबका यह भी मानता है कि अर्धशिक्षित भारतीय समाज में सेंसरशिप की अनिवार्यता बनी रहनी चाहिए ।