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खंजर बना दिया मोहब्बत का एक घर था मेरा लोगो ने उसे खंडहर बना दिया मेरी मिठास मे जहर घोलकर मुझे एक खारा समंदर बना दिया। एक फुल सी थी जिंदगी मेरी एक फूल सी थी जिंदगी मेरी नफरते यूँ दिल मे कभी ना थी छीनकर मेरी जीने की वजह दुनिया ने मुझे बवंडर बना दिया। खूब घिसा-पिटा लोगो ने मुझे अपने-अपने मतलब के हिसाब से था मैं एक लोहे का टुकड़ा म़गर हालात ने मुझे खंजर बना दिया। जिंदगी के गुजर-बसर के लिये चलता रहा मजबूरियों का खेल वक्त ने सबको शंहशाह बनाया मुझे मदारी का बंदर बना दिया। जमाना जुल्मो-सितम करता रहा और इंसानियत मेरी मरती रही था मै भी कभी इंसान ही लेकिन जानवरो ने मुझे जानवर बना दिया।