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कविता मानव अनुभूतियों का शब्द रूपी कलात्मक प्रकाशन है। मनुष्य अपने मन की अनुभूतियों को प्रत्यक्ष रूप में शब्दों में ढालकर अप्रत्यक्ष रूप से पाठकों से संवाद स्थापित करता है। प्रत्युत्तर में यदि पाठक अपनी आलोचनाएँ, समालोचनाएँ लेखक तक पहुंचाते है तो लेखक का अपने शब्दों को मूर्त रूप में होने का आभास होने लगता है औ वह निरन्तर गतिशील बने रहने का प्रयत्न करता है और इसी क्रम में शब्दों का परिवहन यथावत व निरन्तर रखता है।