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किताबें...!
किताबें यूंही नहीं लिखीं जाती... बहुत सबब होते हैं इनके पीछे... कुछ तो मोहब्बत में लिखते... कुछ वीरानेपन से दूर भागने के लिये... कुछ लिखते हैं अपनी ग़मग़ीन ज़िन्दगी को काग़ज़ी मुआयना देने के वास्ते...
और कुछ होते हैं जो किसी को समर्पित करने के लिये किताबें लिखते हैं ॥
यहाँ इक हम हैं जिन्हें ये ख़बर भी नहीं के ये मोहब्बत में है या इबादत में लेकिन जो भी है... बहरहाल ज़िन्दगी के चंद क़िस्सों को मैं लिखने की कोशिश में इक किताब लिख बैठा... ये बात और है के मैं ये करने की ताक में कभी न था फिर भी ये हुआ ॥
आगाज़ कर रहा हूँ मैं... तुम... और मेरे ख़याली करतबों को इक नये अंदाज़-ए-क़लम से... मुमकिन है कहीं न कहीं तुम भी इन्हें पढ़ रहे होंगे... और ये क़लम की क़द्र करने वाली आवाम... क्यों कि साहेब तभी पैदा होते जब लफ़्ज़ों को पढ़नेवाले मौजूद हों इस दुनिया की भीड़ में...!
इसी के साथ मैं साहेब आप सभी पाठकों को और तमाम प्रेरणास्रोत को अपना मोहब्बत भरा पैग़ाम भेज रहा हूँ...!
बेइंतहा मोहब्बत और हौसला अफ़ज़ाई के वास्ते तहेदिल शुक्रिया ॥