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हिन्दी पाठकों के लिए चकाड़ोला का अर्थ समझने में थोड़ी- सी परेशानी होगी क्योंकि चकाड़ोला जगन्नाथ जी का प्रतीक है तथा दारू यानि नीम-काष्ठ से बनी शालभंजिका मूर्तियों में बनी बड़ी-बड़ी गोलाकार आँखों के प्रतीक भगवान जगन्नाथ को चकाड़ोला नाम से संबोधित किया गया है। अब प्रश्न यह उठता है-भगवान जगन्नाथ की आँखें चक्राकार अर्थात वृत्ताकार ही क्यों हैं, दीर्घ वृत्ताकार,वर्गाकार या त्रिभुजाकार ज्यामितिक आकार में क्यों नहीं? अपने अंतर्जगत में झाँकने पर आपको ज्ञात होगा कि वृत्त ही एक ऐसी ज्यामितिक सरंचना है, जिसमें परिधि के अनंत बिन्दुओं से केंद्र बिन्दु की दूरी एक समान है अर्थात् भगवान के लिए सृष्टि के सारे जीव एक समान होते हैं, उनके प्रति किसी भी भेदभाव की दृष्टि भगवान द्वारा नहीं रखी जाती हैं। दूसरा अर्थ यह भी लिया जाता है कि परमाणुओं से लेकर खगोलीय पिंड जैसे सूर्य,चन्द्र, निहारिका,उपग्रह सभी गोलाकार होते हैं अतः सृष्टि के स्रष्टा को किसी गोलाकार आकृति के माध्यम से व्यंजित करना उचित है। यह जगन्नाथ संस्कृति का एक मुख्य पहलू भी है। कवि की सारी कविताओं में आध्यात्मिकता के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण का भी समावेश है। उनके अनुसार जगन्नाथ रूपी वृत्त का केन्द्रबिन्दु सृष्टि में सब जगह है मगर उसकी परिधि अपरिमेय है,सीमाहीन है। इसी प्रकार से गणितीय सूत्र में कवि ने ईश्वर की परिभाषा "limit M/D=G” जहां M=Man,D=Desire तथा G=God से अभिप्रेत है। अगर डिजायर शून्य होती है तो मनुष्य ईश्वर तुल्य हो जाता है और उसका परिमाण अनंत होता है। इस प्रकार से अपनी कविताओं में कवि ने अणु,परमाणु,आइंस्टीन के सूत्र(E=mc2), शरीर के जीवाणु,स्नायु-तंत्र,बाहरी रूपरेखा से लेकर आंतरिक जगत के सौंदर्य-बोध,आत्मा का देश,तृष्णा, अनंत आकांक्षाएँ,प्रीति,प्रत्यय और विवेक आदि अमूर्त शब्दावली की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। भौतिक,रसायन और विज्ञान में भगवान का अनुसंधान कोई कवि किस तरह कर सकता है,उसका जीते-जागते उदाहरण कवि बिरंचि महापात्र है। स्वामी विवेकानंद के शब्दों में अगर विज्ञान अध्यात्म से जुड़ जाती है तो विश्व के अखिल मानव जाति की रक्षा के साथ-साथ विश्व-बंधुत्व की भावना एक प्रतिनिधि आकांक्षा के रूप में उभर कर सामने आती है।