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जो कविता लेखक की जिस मनःस्थिति में उपजती है, उस मनःस्थिति में लेखक की पुनः वापसी असंभव होती है। अगली कविता किसी नवीन मनःस्थिति का परिणाम होती है। कविता की संप्रेषणीयता और इसके लेखकीय दायित्व को इस बाधा के साथ ही समझना होगा। ग्राहय करने की मनःस्थिति को भी साथ में लेकर चलना होगा।
मनःस्थिति की एकरूपता लेखक और पाठक के बीच स्थापित हो जाना सर्वोपलब्धि है।
जो लिखा जाता है वह लेखक का तब तक ही रहता है जब तक कि वह पाठक का न हो जाये। पाठक का हो जाने पर वह लेखक का नहीं रहता। पाठक को सर्वविवेचना का अधिकार प्राप्त हो जाता है और लेखक को इस विवेचना से निखरकर आगे आना आता होता है। यही परीक्षा है लेखक की।