कायस्थ वंशप्रकाश

कायस्थ वंशप्रकाश

स्वर्गीय श्री बाबूलालजी कुलश्रेष्ठ, श्रीमती सरोज कुलश्रेष्ठ

चूंकि मैं छोटेपन से अन्य जातियों द्वारा कायस्थों के बारे में गलत सुना करता था जो मुझे बुरा लगता था मगर तब भी मैं इस बात की असलियत पूछने का पता लगाता रहा तब वर्षों बाद मेरे ध्यान में आया। उत्तम खेती, मध्यम चाकरी, भीख निदान "कायस्थों" का काम चाकरी करना है। राजतरिंगिनी व याज्ञवालक्य स्मृतियों के द्वारा मालूम हुआ कि कायस्थ का अर्थ अफसर है जो कि एक पदवी है। ताम्रपत्रों में महामात्य कायस्थ आदि राज्य संचालन करने वालों की उपाधियां है। याज्ञवलिक्य में लिखा है कि कायस्थ पद के लिए ब्राह्मण को ही चुना जाए इत्यादि।
इस विषय की खोज मैंने सन् 1940 से शुरू की जो सन् 1971 में पूरी हुई है। पहले श्री चित्रगुप्त जी महाराज की उत्पति मैंने और पुस्तक की तरह पुराणों से ही लिखी जिसकी सूक्ष्म तौर पर वादी कुई सभा ने प्रकाशित कर दिया उस सूक्ष्म पुस्तक को लेकर दिल्ली के कुछ सज्जन मुझसे मिले तो तब उस सूक्ष्म पुस्तक की प्रकाशिता प्रति मेरे सामने आई व उन्हीं सज्जनों के आग्रह पर मैंने श्री चित्रगुप्त जी महाराज नामक एक ज्योति है जो ऊपर अंधकार से परे दिखाई दी जो सूर्य व बिजली से उत्तम प्राणी (देवों) के लिए देवत्रा (महादेव, ब्रह्या व विष्णु बनकर आई) (यजुः 35-14) वह वहाॅ से सूर्य की किरणों की तरह बहकर आई विश्व के संचालन करने के लिए आई (यजुः 7-41) वह चित्रम् शक्ति है जो दृश्य पदार्थों मे आम्र (व्याप्त है (यजुः 7-42) इसका कभी नाश नहीं होता। वह पहले से ही मौजूद थी। (यजुः 36-24) वही शम्भू शक्ति है।
जिसके यजुः 16 अध्याय में अनेकों नाम है (यजुः 16-41) वहीं शक्ति भूतस्य जात है प्रतिरेक आसीत् यजुः 13-4 के अनुसार महाप्रलय में भी मौजूद रहती है। प्राणी के सोते समय यह दोंनो शक्ति सो जाती है।
केवल शम्भू (महादेव शक्ति) जाग्रत रहकर अपना काम करती रहती है। (यजुः 31-22 विष्णु में बताई गई है जो अदृश्य है।) इन्हीं तीनों शक्तियों के निर्माण करके एतरेयो उपनिषद 12-22 के अनुसार ब्रह्यरन्ध्र में संचालित किया व संचालन करने वाली क्रिया को कायस्थ कर्म कहा गया है। यजुः 4030 में पेशे लिखे है उन्हीं पेशों से जातियां बन गई।

बाबूलालजी कुलश्रेष्ठ
(बटेश्वरी दयालु)