ताज और खण्डहर, दामोदरलाल जोशी व्यथित

ताज और खण्डहर

दामोदरलाल जोशी व्यथित

निवेदन
प्रिय पाठको!
ताज महल संसार की अद्वितीय एवं सर्वश्रेष्ठ कृति है। मैने कई बार इसे जिज्ञासु दृष्टि से देखा है। एक बार मन भरकर देखने के बाद जब-जब मैं बहाॅ गया हूॅ, तब तब कोई नई बात, नया ज्ञान लेकर आया और हर बार यह अनुभव किया कि अभी तो किशोरावस्था से युवावस्था में ही प्रवेश कर रहा है। परन्तु इन 25 वर्षो में जब जब यमुना पार वाले खण्डहर को देखा तो वह हर बार पतनोन्मुख दिखाई दिया। अन्तिम बार मेरे इस मित्र को दयनीय दशा देख कर मुझे रोना आ गया और मेरे हृदय के उद्गार लेखनी का सम्बल लेकर ‘‘ताज और खण्डहर‘‘ के रूप् मे इस पुस्तक पर बिखर पड़े। जो आदर एवं श्रद्धापूर्वक आपको समर्पित कर रहा हूॅ।
आप पढे़गे इस पुस्तक में ऐतिहासिक तथ्य हैं। कहीं-कहीं कल्पना की उड़ान भी भरी है, जो पद्यकारों का जन्मसिद्ध अधिकार रहा हैं। कहीं कहीं पाठक उर्दू, अंगेजी शब्द भी पढे़गे। इसका कारण है कि कथानक मुगल काल से सम्बन्धित हैं। हिन्दी रूपान्तर मिलते हुए भी उसी उर्दू शब्द का प्रयोग इसलिये किया गया है कि शब्द की वास्तविकता को आघात न पहुंचे। वैसे मैने यथासम्भव सरल हिन्दी में ही लिखने का प्रयत्न किया है ताकि जनसाधारण लाभान्वित हो सके।
पुस्तक का शीर्षक मात्र देखकर पाठक वह न समझ बैठे कि इससे केवल ताज महल और खण्डहर की कहानी है। आप इस पुस्तक में विभिन्न प्रकार के बदलते विचारों का आस्वादन करेगें। रस परवर्तन इस पुस्तक की विशेषता है। प्रत्येेक उपखण्ड में श्रृंगार या हास्य रस को एकदम करूणा या शान्त रस में बदल कर मेरी यह जिज्ञासा रही है कि पाठकों के बदलते हुए मनोभावों का प्रतिबिम्ब उनके सुख मण्डल पर किस तरह पड़ता है। और कविता उनके हृदय को छूने में कहाॅ तक सफल सिद्ध हुई है।
विशेषतया यह पुस्तक विद्यार्थियों के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध होगी क्योंकि इसमें वर्तमान आश्चर्य ताज-महल और चीन की दीवार के अतिरिक्त प्राचनी काल के सात आश्चर्यो का भी विवेचन किया गया है। इसके साथ साथ साम्राज्यबाद, और सामन्तबाद से प्रजातन्त्र का तुलनात्मक वर्णन अप्रत्यक्ष रूप से इस पुस्तक में मिलेगा। तत्कालीन कलाकार की उपेक्षा,श्रमिकों की गरीबी, निर्धनों की दीन दशा, कृषको के साथ अन्याय का व्यवहार, सामन्तों का विलासमय जीवन एकतन्त्र में शोषण वृत्ति, प्रजातन्त्र के गुण बहुउद्देशीय योजना विकास, अछूतोद्धार इस पद्य पुस्तक में भरने का मेरा हर सम्भव प्रयत्न सफल रहा है या नहीं, इसका निर्णय तो पाठक ही दे सकते हैं, परन्तु पुस्तक पढ़ते इन गरीबों के प्रति सद्भावना में दो अश्र, कण गिराकर या लम्बी सांस लेकर, एक क्षण के लिए यदि पाठक स्वतः मौन भी हो जावेगे तो मैं समझूगा, मेरा खण्डहर गरीबों, निर्धनों, और शोषितों का प्रतिनिधित्व कर गया और मेरा प्रयास सफल है, अन्यथा नहीं।
विनीत-
दामोदरलाल जोशी "व्यथित"

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